मछली पास के सही परिचालन हेतु टोंस नदी में हिमालयी मछली प्रजातियों का टैगिंग सह संरक्षण की दिशा में जागरूकता कार्यक्रम
मछली पास के सही परिचालन हेतु टोंस नदी में हिमालयी मछली प्रजातियों का टैगिंग सह संरक्षण की दिशा में जागरूकता कार्यक्रम बांधो/ बैराजों को जलवायु परिवर्तन के साथ ही नदी परिस्थितिकी और मत्स्य के लिए खतरा माना जाता हैं । टोंस नदी यमुना की एक प्रमुख सहायक नदी है और इस नदी में देशी और विदेशी दोनों मछली प्रजातियां पाई जाती हैं। अपनी भूमंडलीय विशेषतायों के कारण हिमालयी नदियों को जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अधिकतर प्राथमिकता दी जाती है। सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल ) ने एक 60 मेगावाट की नाइटवार मोरी परियोजना का प्रस्ताव दिया हैं। एक तकनीकी सलाहकार के रूप में संस्थान ने, मछ्ली की विविधता, बहुतायत और प्रवासी मछली प्रजातियों और उनके प्रजनन जीव विज्ञान पर विशेष ध्यान देते हुए विस्तृत जांच की है। अध्ययन के आधार पर, संस्थान ने मछ्ली प्रजातियों के प्रवास के लिए उपायुक्त फिश पास डिजाइन का प्रस्ताव दिया है। पाँच अलग अलग मछ्ली प्रजातियों की टैगगिंग इस प्रस्तावित फिश पास के लिए किया गया, जो की i) स्किज़ोथोरैक्स रिचर्डसोनी (स्नो ट्राउट) ii) स्किज़ोथोरैक्स प्रोगैस्टस (दीनावा स्नोट्राउट) iii) स्किज़ोथोरा लेबियाटस (कुन्नार स्नोट्राउट ) iv) साल्मो ट्रुटा v)ऑनकोरहयंचूस मईकिस्स ( राइनबो ट्राउट ) हैं । कुल 50 मछलियों की टैगगिंग की गई , (31°04.076’ उत्तर 078°05.989’पूर्व ; उच्चाई 1275एम से 31°01.994’ उत्तर 078°03.181’पूर्व ; ऊँचाई 1154 मी० ) 19 अप्रैल से 3 मई 2021 के दौरान। आईसीएआर- सिफ़री के टी बार अंकर फ़्लोय 45 से टैगगिंग का कार्य किया गया। स्थानीय मछुआरों, जलविद्युत परियोजना के अधिकारियों, स्थानीय लोगों, के लिए टोंस नदी की मछ्ली का संरक्षण और उनके प्रवासीय पथ के लिए टैगगिंग की विशेषता पर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया गया। अलग अलग स्थानों में कोविद 19 के दिशा निर्देशों को मानते हुए 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया । जांच के दौरान टैग की गई मछ्ली को 42 घंटें के बाद 4.5 किलोमीटर की दूरी से बरामद किया गया , जो यह दर्शाता हैं की प्रस्तावित बांध में फिश पास के प्रावधान से इन मछली प्रजातियों को नदी में उनके निर्वाह के लिए प्रवासी व्यवहार की सुविधा मिलेगी। यह हिमालयी नदी के पाँच अलग अलग मछ्ली प्रजातियों के प्रवासीय पथ को देखने के लिए किया गया यह पहला अध्ययन हैं। पूरे कार्य का संचालन संस्थान के निदेशक और प्रधान अन्वेषक डॉ॰ बि॰के॰ दास की देख रेख में , और डॉ॰ ए॰ के॰ साहू , वरिष्ठ वैज्ञानिक और परियोजना से जुड़े कार्यकर्तायों द्वारा किया गया।