राष्ट्रीय मत्स्य कृषक दिवस, 2021 पर भारत का अमृत महोत्सव मनाने के लिए शुरू किया गया "स्थायी मत्स्य पालन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन प्रक्रिया " पर राष्ट्रीय अभियान

भारतीय स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ (भारत की आजादी की अमृत महोत्सव) के स्मारक अवसरपर, भाकृअनुप मात्स्यिकी विभाग द्वारा पूरे भारत में स्थायी मत्स्य पालन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन पर राष्ट्रीय अभियान की शुरुवात की गई। इस राष्ट्रीय अभियान में सभी आठ मात्स्यिकी संस्थान जैसे सीआईएफआरआई, सीएमएफआरआई, एनबीएफजीआर, डीसीएफआर, सीआईएफई, सीआईएफए, सीआईबीए और सीआईएफटी शामिल हुए । भाकृअनुप केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के नेतृत्व में राष्ट्रीय मत्स्य कृषक दिवस 10 जुलाई 2021 के शुभ दिन पर यह अभियान शुरू किया गया। इस महत्वपूर्ण अवसर पर, भाकृअनुप केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ने पारिस्थितिकी तंत्र आधारित स्थायी मत्स्य पालन प्रबंधन के लिए कार्यक्रमों और अभियानों की एक श्रृंखला का आयोजन किया।
अन्तर्स्थलीय खुले जल मात्स्यिकी प्रबंधन वेबिनार के उद्घाटन पर डॉ. बि. के. दास, निदेशक, भाकृअनुप केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रेरित प्रजनन के जनक प्रो. हीरा लाल चौधरी को पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। मछली के प्रेरित प्रजनन की पहली सफलता 10 जुलाई 1957 को प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हीरा लाल चौधरी और डॉ. अलीखुनी द्वारा प्राप्त की गई थी। प्रेरित प्रजनन की पहली सफलता को मनाने के लिए, भारत सरकार ने 10 जुलाई को राष्ट्रीय मत्स्य कृषक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है।
डॉ. बि.के.दास, निदेशक, भाकृअनुप केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ने अपने स्वागत भाषण में मुख्य अतिथि और सभी गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने राष्ट्रीय अभियान के बारे में जानकारी दी और बताया कि यह किसानों, मछुआरों और महिलाओं, छात्रों, बीज उत्पादकों, इनपुट डीलरों, किसान उत्पादक संगठनों, किसान उत्पादक कंपनियों, स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों, किसान समूहों और उद्यमियों आदि को सशक्त बनाने में मदद करेगा।
डॉ. जे. के. जेना, उपमहानिदेशक, भाकृअनुप (मात्स्यिकी विज्ञान), और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रीय मत्स्य कृषक दिवस प्रेरित प्रजनन तकनीक के आविष्कार का प्रतीक है जिसने देश में जलीय कृषि उत्पादन में क्रांति ला दी। वर्षों से शोधकर्ताओं ने किसानों द्वारा किए गए प्रजनन तकनीक और शोधन के ज्ञान को जोड़ा है। उन्होंने पिछले पांच दशकों में विभिन्न मछली नस्लों के विकास और देश में उत्पादन बढ़ाने में वैज्ञानिक समुदाय द्वारा किए गए योगदान पर भी ध्यान दिया। मछली उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है और अब बाजार को उत्पादन से जोड़ने का समय आ गया है। नई चुनौती उत्पादन को बढ़ाकर 25 मिलियन टन तक करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आजकल लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हैं, इसलिए उत्पाद की गुणवत्ता भी बनी रहनी चाहिए। विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता और पूर्व एडीजी, वर्ल्ड फिश डॉ. एम.वी. गुप्ता ने सम्मानित अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि 1980 के दशक तक 90% मछली बीज नदियों से एकत्र किए जाते थे, इस प्रेरित प्रजनन तकनीक ने हैचरी के माध्यम से वर्तमान में बीज उत्पादन को बढ़ाया है। मछली के अधिकांश बीजों का उत्पादन हैचरी में किया जाता है। मत्स्य पालन क्षेत्र ने राष्ट्र को खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान की है।
डॉ. दिलीप कुमार, पूर्व निदेशक और कुलपति, भाकृअनुप-सीआईएफई ने अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि इस एक शोध परिणाम प्रेरित प्रजनन के परिणामस्वरूप करोड़ों मछुआरे अपने उत्पादन और आजीविका को बढ़ाकर लाभान्वित हुए हैं ।
डॉ. वी. वी. सुगुनन, पूर्व एडीजी, भाकृअनुप (अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी ), ने कहा कि मछली बीज उत्पादन में वृद्धि के कारण, भारत ने अन्तर्स्थलीय मछली उत्पादन में काफी वृद्धि की है। कल्चर आधारित मत्स्य प्रबंधन के कारण देश में जलाशय और आर्द्रभूमि मछली उत्पादन में वृद्धि होने जा रही है।
डॉ. एन. सारंगी, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-सीफा, डॉ. ए. गोपालकृष्णन, निदेशक, भाकृअनुप-सीएमएफआरआई, डॉ. सीएन रविशंकर, निदेशक, आईसीएआर-सीआईएफटी, डॉ. पदमा कुमार, आरएसी अध्यक्ष, आईसीएआर-सीआईएफआरआई और अन्य अतिथियों ने भी इस अवसर पर अपने वक्तव्य रखें ।
डॉ. ए. के. दास ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। इस कार्यक्रम में 5000 से अधिक मछुआरों, छात्रों, उद्यमियों ने भाग लिया।
इस राष्ट्रीय अभियान के तहत बड़ी संख्या में कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन किया गया। भाकृअनुप केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, गुवाहाटी केंद्र और आईसीएआर-आटारी ने 'एनईआर के मत्स्य पालन और जलीय कृषि के लिए पारिस्थितिकी तंत्र आधारित मत्स्य प्रबंधन' पर वेबिनार का आयोजन किया जहां 300 से अधिक लोगों ने भाग लिया। क्षेत्रीय केंद्र , गुवाहाटी ने एएफडीसी के सहयोग से असमिया भाषा में 'प्रबंधन प्रक्रिया के लिए असम के बील इको-सिस्टम का प्रबंधन' पर वेबिनार का आयोजन किया। मनचनाबेले जलाशय, रामनगर जिला, कर्नाटक में सतत विकास के लिए जलाशय मत्स्य प्रबंधन पर एक ऑनलाइन जागरूकता कार्यशाला 10 जुलाई 2021 को सुबह 9 से 11 बजे तक आयोजित की गई थी। कर्नाटक के विभिन्न जिलों के मत्स्य अधिकारियों के साथ लगभग 200 मछली किसानों ने ऑनलाइन मोड के माध्यम से कार्यक्रम में भाग लिया।
पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश राज्यों में भी बड़ी संख्या में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। जलाशयों में आजीविका संवर्धन के लिए सतत मत्स्य पालन पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन केरल के त्रिशूर जिले के वज़ानी जलाशय में संस्थान के कोच्चि क्षेत्रीय केंद्र द्वारा किया गया। संस्थान के वडोदरा केंद्र द्वारा माही नदी में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 100 मछुआरों ने भाग लिया। दाशपारा घाट, बैरकपुर और संगम, प्रयागराज में गंगा नदी में रैन्चिंग कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जहां गंगा नदी में 40,000 और 5000 अंगुलिमीनों को प्रवाहित किया गया। इसके साथ ही मछली के व्यवहार और विकास को देखने के लिए 500 मछलियों को टैग किया गया और छोड़ा गया।


  
  
  
  
  
  


This website belongs to ICAR-Central Inland Fisheries Research Institute, Indian Council of Agricultural Research, an autonomous organization under the Department of Agricultural Research and Education, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India. Copyright @ 2010 ICAR, This website is developed & maintained by Agricultural Knowledge Management Unit.
2017 Last updated on 03/04/2021