एनएएसएफ परियोजना के तहत संस्थान में "हिलसा, टेनुआलोसा ईलिशा का घेरे में प्रजनन: चरण II " पर भागीदार संस्थानों की बैठक
संस्थान मुख्यालय, बैरकपुर में एनएएसएफ परियोजना के अंतर्गत दिनांक 03 अगस्त 2021 को ऑफलाइन और ऑनलाइन मोड में "हिलसा, टेनुआलोसा ईलिशा का घेरे में प्रजनन : चरण II" विषय पर एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में संस्थान के निदेशक तथा परियोजना के प्रधान समन्वयक, डा. बि. के. दास के साथ संस्थान के प्रशासनिक कर्मी और भागीदार संस्थानों के सह- समन्वयकों ने भाग लिया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ विभिन्न संस्थानों के निदेशक और सहयोगी संस्थानों के सह-समन्वयक और प्रतिभागी ऑनलाइन मोड में उपस्थित थे। बैठक में डॉ. बि के दास, निदेशक, भाकृअनुप-केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सिफ़री), बैरकपुर (प्रमुख संस्थान); डॉ. गोपाल कृष्ण, निदेशक और कुलपति, भाकृअनुप-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, मुंबई; डॉ. एस.के. स्वैन, निदेशक, भाकृअनुप-केंद्रीय मीठा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर; डॉ. के.पी. जितेंद्रन, निदेशक, भाकृअनुप-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई; डॉ. एस. सामंत, कंसोर्टियम समन्वयक, सिफ़री; डॉ. डी. एन. चट्टोपाध्याय, सह-समन्वयक, भाकृअनुप- केंद्रीय मीठा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर; डी. डी. डी., सह-समन्वयक, भाकृअनुप-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई; डॉ. एस. दासगुप्ता, सह-समन्वयक, भाकृअनुप-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान; डॉ. बी. के. बेहरा, सह-समन्वयक, सिफ़री; डॉ. आर के मन्ना, सह-समन्वयक, सिफ़री और डॉ. ए के साहू, सह-समन्वयक, सिफ़री । कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए डा. बि के दास, निदेशक ने सहयोगी संस्थानों के सभी निदेशकों से अनुरोध किया कि वे परियोजना के कार्यान्वयन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए पहल करें। विनाशकारी चक्रवात “यास” के कारण हुए नुकसान और कोविद महामारी से निपटने के लिए परियोजना समन्वयकों को हर संभव सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। परियोजना समन्वयक, डॉ गोपाल कृष्ण ने कहा कि उनके संचालन में तकनीकी कार्यक्रम की पूरा उत्तरदायित्व परियोजना समन्वयक और सह- समन्वयक का होगा। भाकृअनुप-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र, रहारा, कोलकाता के वैज्ञानिक] डॉ. एस.के. स्वैन ने परियोजना गतिविधियों को पूर्ण समर्थन के साथ हिलसा प्रजनन के लिए एक प्रमुख कारक के रूप में पर्यावरणीय कारकों, लवणता के अलावा हार्मोन संबन्धित परिवर्तन की निगरानी पर जोर दिया। डॉ. के.पी. जितेंद्रन ने हिलसा के क्षेत्रीय महत्व के साथ-साथ इसके संरक्षणात्मक लाभों पर जोर दिया जिससे प्रजातियों की गोनैडल परिपक्वता को अधिक व्यावहारिक तरीके से निपटाया जा सके। डॉ. दास ने परियोजना सदस्यों सहित सभी निदेशकों को मीडिया में परियोजना संबंधी किसी भी जानकारी प्रदान करने में सतर्क किया। डॉ. एस सामंत, डॉ. डी एन चट्टोपाध्याय, डॉ. डी. के. दे और डॉ. एस दासगुप्ता पिछले 6 महीनों के दौरान की गई उद्देश्य-वार प्रगति को प्रस्तुत किया और अगले 3 महीनों में किए जाने वाले कार्यों की प्रस्तावित अनुसंधान योजना पर चर्चा की जिसके बाद संबंधित आईसीएआर भागीदार संस्थानों का बजट उपयोग किया गया। इस बैठक में विनाशकारी चक्रवात,’ यास’ के कारण भाकृअनुप-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान के काकद्वीप, पश्चिम बंगाल स्थित ब्रूड मछली तालाबों और कोलाघाट के तालाबों की चर्चा की गयी।
इस तरह के नुकसान के कारण परियोजना लक्ष्यों को प्राप्त करने में विलंब होने का अंदेशा बना रहता हैं। डॉ. दास ने परियोजना के सदस्यों से अत्यधिक सहयोग के लिए कहा तथा सभी निदेशकों से इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजना के लिए संबंधित संस्थान निधि से आवश्यकता-आधारित वित्तीय सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया। प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए कई तालाबों में हिल्सा स्टॉक करने का सुझाव दिया गया। हिल्सा के प्रजनन के लिए संयुक्त सामान्य प्रोटोकॉल का विकास के साथ-साथ ब्रूड स्टॉक प्रबंधन के लिए अधिक तालाबों को जोड़ने पर बल दिया गया। डॉ. दास प्रशासनिक अधिकारियों से एनएएसएफ-हिलसा परियोजना को प्राथमिकता देने का आग्रह किया और कहा कि संरक्षण की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, कोलाघाट और ऐसे अन्य क्षेत्रों में जागरूकता कार्यक्रम द्वारा स्थानीय हिल्सा मछुआरों को आमंत्रित किया जाना चाहिए।