भारत में पहली बार गंगा नदी में निषेचित किया गया हिल्सा के अंडे : नदी पारिस्थितिकी तंत्र में मछली प्रजातियों की बहाली की दिशा में आईसीएआर- सिफ़री द्वारा उठाया गया कदम
1st मार्च, 2022
भाकृअनुप-केंद्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सिफ़री), बैरकपुर ने पहली बार गंगा नदी के फरक्का बैराज के अपस्ट्रीम में 1,80,000 हिल्सा के अंडे को निषेचित किया, जिससे गंगा नदी में हिल्सा मत्स्य पालन बहाली की दिशा में एक नई दिशा मिल सके। हिल्सा गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेगना (GBM) बेसिन की सबसे प्रसिद्ध प्रजाति है और ज्यादातर पश्चिम बंगाल और बंगदेश के लोगों द्वारा पसंद की जाती है। निरंतर मानवजनित दबावों के कारण, यह प्रजाति गंगा नदी में विशेष रूप से फरक्का, पश्चिम बंगाल से प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के मध्य खंड से गायब होती जा रही है। गंगा नदी में मछली प्रजातियों की तत्काल बहाली के महत्व को महसूस करते हुए, आईसीएआर-सिफ़री, बैरकपुर ने स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के सहयोग से, वयस्क हिल्सा की खेती सहित यह कर्मकांड की शुरुवात की है। वर्ष 2020 से, चुने हुए खंड में 45000 से अधिक वयस्क हिल्सा को पहले ही निषेचित किया जा चुका है और जिसका परिणाम दिलचस्प हैं। निषेचित अंडों की रैंचिंग जर्मप्लाज्म संरक्षण और प्रजातियों की बहाली की दिशा में एक नया दृष्टिकोण माना जा रहा है। निषेचित हिल्सा अंडों की खेती न केवल प्रजातियों की बहाली की दिशा में भारत में पहली बार उठाया गया कदम है, बल्कि खुले पानी की नदियों में देशी जर्मप्लाज्म संरक्षण की दिशा में भी एक प्रयास है, जो सतत विकास लक्ष्य (SDG-14,15) यानी पानी के नीचे जीवन की दिशा में गतिविधियों का समर्थन करता है। हमारे लिए खोए हुए आवास को पुनर्स्थापित करना महत्वपूर्ण है, इसमें समय लगता है और कई हितधारकों की भागीदारी, प्रजातियों के विभिन्न जीवन चरणों में कृत्रिम प्रजनन और मत्स्यपालन, नदियों की तरह खुले पानी में खोई हुई प्रजातियों की बहाली की सुविधा प्रदान करना जरूरी हैं। मछली को निषेचित करने से पहले, फरक्का के ऊपर गंगा नदी में उचित स्थान का चयन किया गया था ताकि उच्च जल प्रवाह, अधिक गहराई और मानव हस्तक्षेप से बचा जा सके। इस प्रक्रिया के दौरान, वयस्क हिल्सा नर और मादा को ड्राई स्ट्रिपिंग विधि के माध्यम से प्रजनित किया गया था। निषेचन दर 85-90% थी। निषेचित अंडों को ऑक्सीजन की सहायता से पैक किया गया और चयनित स्थल पर पहुँचाया गया। पानी के तापमान में वृद्धि से बचने के लिए सुबह या शाम के समय का ही चयन किया गया। संपूर्ण कार्य संस्थान के निदेशक डॉ. बि .के.दास एवं एनएमसीजी परियोजना टीम के सदस्यों के मार्गदर्शन में किया गया ।