डॉ. बि के दास, निदेशक, सिफरी, बैरकपुर और अध्यक्ष, पीएफजीएफ ने अपने स्वागत सम्बोधन में सम्मेलन के विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए देश में अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी और इसके प्रबंधन की स्थिति को बताया। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन मत्स्य पालन और जलीय कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, सलाहकारों, छात्रों तथा अन्य हितधारकों के बीच विचारों का आदान-प्रदान करने, जानकारी साझा करने, और आम सहमति बनाने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
डॉ. जे के जेना, उप-महानिदेशक (मत्स्य विज्ञान) भारतीय कृषि अनुसंधान, नई दिल्ली तथा उदघाटन कार्यक्रम के अध्यक्ष ने अपने संबोधन में भारतीय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था उन्नयन में मत्स्य पालन क्षेत्र के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मत्स्य पालन और जलीय कृषि के लिए सतत विकास लक्ष्य जैसे भूखमरी उन्मूलन का लक्ष्य, उत्तम स्वास्थ्य और जन कल्याण, जलीय जीवन और स्थल जीव आदि अधिक प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि अंतर्स्थलीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि का भारत के मत्स्य पालन में 65 प्रतिशत से अधिक योगदान है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, उनके जैविक समुदायों और मत्स्य पालन पर जल की वेग गति, प्रदूषण, अनियमित वर्षा, वैश्विक तापमान वृद्धि, जलीय संसाधनों का अति-दोहन, मछलियों का अनियंत्रित शिकार के कारण हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 22 मिलियन टन मछली उत्पादन के लक्ष्य के साथ, इस क्षेत्र में और अधिक निवेश करने और अधिक उद्यमियों को लाने का समय आ गया है।
डॉ. रिजी जॉन, कुलपति, केयूएफओएस और विशिष्ट अतिथि ने अपने संबोधन में भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र के महत्व पर बात की। उन्होंने कहा कि वर्ष 1969 में भारत में केवल एक मात्स्यिकी महाविद्यालय था, लेकिन वर्तमान में तीस कॉलेज हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि मछली अब न केवल सस्ते प्रोटीन के रूप में बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भोजन के रूप में भी पहचानी जाने लगी है। प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ, प्रग्रहण मात्स्यिकी अब उत्पादन विज्ञान के रूप में जाना जाने लगा है।
श्री बंकिम चंद्र हाजरा, माननीय मंत्री सुंदरबन मामले और विकास, पश्चिम बंगाल सरकार ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में पश्चिम बंगाल और भारत के आर्थिक विकास में मत्स्य क्षेत्र द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारतीय जलीय कृषि में वर्तमान प्रगति, स्थायी मत्स्य पालन के लिए मत्स्य संसाधन प्रबंधन, मत्स्य उत्पादन में सुधार के लिए जैव प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप, टिकाऊ मत्स्य पालन के लिए स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रबंधन, मत्स्य पालन के बाद की तकनीक और मूल्य संवर्धन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवशयकता है।
स्वामी सुपर्णानन्द महाराज, मानद सचिव, रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कोलकाता एवं सम्मानित अतिथि ने अपने संबोधन में यह आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन भविष्य के लिए उपयोगी दिशा-निर्देश बनाने पर कार्य करेगा। उन्होंने पी सी थॉमस वक्तृता के अंतर्गत हमारे देश की सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और धर्म और विभिन्न विचारों पर चर्चा की। उन्होंने जोर दिया कि जहां विज्ञान और संस्कृति दो रंगों के समान हैं जबकि विज्ञान और धर्म दो विपरीत ध्रुव हैं। सभ्यता और विज्ञान और प्रौद्योगिकी एक दूसरे के साथ हैं और एक दूसरे के पूरक भी। संस्कृति मन का विकास है जबकि विज्ञान प्रकृति को बाहरी खोज का परिणाम होता है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की विभिन्न संदेशों और दर्शन के बारे में बताया।
इस अवसर पर इनलैंड फिशरीज सोसाइटी ऑफ इंडिया, बैरकपुर की मानद फैलोशिप से प्रो. पी सी थॉमस, पूर्व निदेशक, मात्स्यिकी महाविद्यालय, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, ओडिशा और डॉ. ए. एकनाथ, पूर्व महानिदेशक, नाका (The Network of Aquaculture Centres in Asia-Pacific ) तथा पांच शोधकर्ताओं, प्रो. जे अब्राहम, डा. पीसी दास, डा एम ए खान डा जे के सुंदराय को सम्मानित किया गया। साथ ही, संस्थान के प्रकाशनों का विमोचन किया गया। सम्मेलन में 500 से अधिक शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, छात्रों, उद्योगों के प्रतिनिधियों और पश्चिम बंगाल के 100 किसानों ने भाग लिया।