संस्थान मुख्यालय, बैरकपुर में दिनांक 26 अप्रैल 2022 को इस सहयोगी परियोजना के लिए एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ सिफरी के निदेशक डॉ. बि. के. दास के स्वागत भाषण से किया गया जिसमें उन्होंने सर्वप्रथम सीटीआरटीआई, रांची के निदेशक, डॉ. के. सत्यनारायण तथा डॉ. के. जेना, वैज्ञानिक-डी सहित उपस्थित वैज्ञानिकों और मत्स्य किसानों का स्वागत किया। डॉ. दास ने चयनित मछली प्रजातियों के लिए कम लागत वाली मछली फ़ीड के संदर्भ में रेशम उद्योग अपशिष्ट के प्रभावी उपयोग पर जोर दिया। परियोजना के प्रधान अन्वेषक के तौर पर डॉ. दास ने अपनी प्रस्तुति में परियोजना गतिविधियों का मूल्यांकन किया और चयनित मछली प्रजातियों के लिए रेशम कीट प्यूपा से बने आहार (एसडब्ल्यूपीएम) की व्यवहार्यता तथा परीक्षण जैसी महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। इस संदर्भ मरीन कुल चार प्रकार की पैलेट फ़ीड तैयार की गई है – रेशमीन- 1 मिमी (चारा मछलियों के लिए), रेशमी अमृत - 2 मिमी (अंगुलिकाओं के लिए), रेसमीन गोल्ड+ - 3 मिमी (पोना मछलियों के लिए) और रेशमीन गोल्ड - 4 मिमी (पोना और ब्रूड मछलियों के लिए)।
विकसित फ़ीड का परीक्षण तिलापिया नाइलोटिकस और पंगेसियानोडोन हाइपोथाल्मस मछलियों में किया गया। प्रयोगशाला में फ़ीड परीक्षण के तहत तुलनात्मक वृद्धि और उत्तरजीविता देखी गई। झारखंड के माईथन जलाशय में स्थापित पिंजरों में सर्वोत्तम मत्स्य आहार के साथ परीक्षण किया गया जिसमें विकास प्रदर्शन उत्तम पाया गया। यह फ़ीड कार्प, शाकाहारी और सर्वाहारी मछली प्रजातियों में समान रूप से प्रभावी पाया गया। इस कार्यक्रम में मछली किसानों को उनके जल निकायों में परीक्षण के लिए 30 किलो चारा वितरित किया गया। अतः वर्तमान परीक्षण से रेशम कीट अपशिष्ट से सुरक्षित और प्रभावी मछली आहार से मछुआरों की आय को दोगुना किया जा सकता है। कार्यक्रम में सह-प्रधान अन्वेषक, डॉ एम ए हसन, प्रभागाध्यक्ष, डॉ डी के मीणा, वैज्ञानिक, डॉ राहुल दास, वैज्ञानिक सहित परियोजना टीम ने भाग लिया। इस कार्यकम मे सुंदरबन तथा पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों से 30 प्रगतिशील मछली किसानों ने भाग लिया।