रैन्चिंग कार्यक्रम का शुभारंभ दिनांक 14 मई 2022 को बैरकपुर से ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार के करकमलों से हुआ। महानिदेशक ने कार्यक्रम का शुभारम्भ करने के दौरान बताया की नदियों में विशेषकर गंगा नदी में मत्स्य बीज को छोड़ने से पारिस्थितिकीय और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों का पुनर्रूद्धार होगा जिसके फलस्वरूप अर्थ गंगा के संकल्पना को पूरा करने के साथ-साथ गंगा नदी में मत्स्ययन से प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों की आजीविका को सुनिश्चित करने के साथ उनके आय में बढ़ोतरी करने में मददगार साबित होगी । सिफ़री के निदेशक और ‘नमामि गंगे’ परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. बसंत कुमार दास ने स्थानीय मछुआरों को गंगा नदी में प्राप्त मछलियों और डॉल्फिन के स्वास्थ्य और संरक्षण के पारिस्थितिक विषयों के बारे में जागरूक किया। सिफरी के निदेशक ने बताया की संस्थान और केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले अन्य संस्थान गंगा नदी की मात्स्यिकी विशेषकर हिल्सा मात्स्यिकी, पुनर्रूद्धार व् संरक्षण के लिए कटीबद्ध है । पहले चरण में, 14 मई 2022 को बैरकपुर के गांधी घाट में 2 लाख से अधिक (रोहू, कतला, कलबासु और मृगाल/नैनी) फिंगरलिंग/अंगुलिका को गंगा नदी में छोड़ा गया। इसके साथ ही गंगा नदी के संरक्षण पर जन जागरूकता अभियान और ‘गंगा आरती’ का भी भव्य आयोजन किया गया ।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन प्रायोजित परियोजना के प्रमुख उद्देश्यों में मछली की विविधता का अन्वेषण, सर्वेक्षण, बहुमूल्य मछलियों जैसे रोहू, कतला, कलबासु, मृगाल/नैनी और महासीर के स्टॉक मूल्यांकन के साथ–साथ चयनित मछली प्रजातियों के बीज का उत्पादन और उसके स्टॉक में वृद्धि शामिल है। रोहू, कलबासु और मृगाल/नैनी जैसी मछलियाँ न केवल नदी के स्टॉक में वृद्धि करेंगी बल्कि नदी की स्वच्छता को बनाए रखने में भी मदद करेंगी । इस कार्यक्रम का आयोजन कोविड -19 के सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया गया। समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच सक्रिय भागीदारी देखी गई और गंगा के तटवर्ती इलाकों के मछुआरों को गंगा के संरक्षण और उसके बहुमूल्य मछलियों के स्टॉक में वृद्धि के संदर्भ में जागरूक किया गया और संवेदनशील बनाया गया।