झारखंड की ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को दिया गया सजावटी मछली पालन का प्रशिक्षण
7 जून, 2022
पश्चिम बंगाल पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (डब्लूबीयूएएफएस) के कुलपति प्रो.चंचल गुहा ने 30-05-22 को झारखंड की आदिवासी महिलाओं के लिए सजावटी मछली पालन पर पांच दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया। डॉ.एच.एन.द्विवेदी, झारखंड के मत्स्य पालन विभाग के निदेशक और आईसीएआर-सिफ़री के निदेशक डॉ. बि.के.दास ने उद्घाटन सत्र में उपस्थित रहकर कार्यक्रम की शोभा में वृद्धि की ।
मुख्य अतिथि ने आदिवासी महिलाओं को संबोधित करते हुए बताया कि सजावटी मछली पालन पर यह अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है, जो उनके आय सृजन के साथ-साथ आगे आने वाले समय में आजीविका के मार्ग प्रशस्थ करेगा। झारखंड के मत्स्य पालन निदेशक डॉ. द्विवेदीजी ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि झारखंड मत्स्य विभाग, आईसीएआर-सिफ़री के सहयोग से सजावटी मछली पालन का नेतृत्व करेगी और जनजातीय समुदाय के बीच व्यापक जागरूकता पैदा करेगी और ग्रामीण महिला हितधारकों को सजावटी मछली पालन करने के लिए हर संभव सहायता प्रदान करेगी।सिफ़री के निदेशक डॉ. बि.के. दास ने कहा कि मत्स्य पालन विभाग के परामर्श से लाभार्थियों के बीच सजावटी मछली पालन किट की 60 इकाइयां वितरित की गई हैं, और ग्रामीण महिलाओं ने खेती का अभ्यास शुरू भी किया है। चयनित लाभार्थियों को एफआरपी सजावटी टैंक (400 लीटर), सजावटी मछली बीज, मछली चारा, जलवाहक, दवा और अन्य सामान प्रदान किए गए थे। रांची, जमशेदपुर और बोकारो में ऑनसाइट प्रदर्शन और जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया और उन्हें प्रारंभिक कौशल प्रदान किया गया। इन पांच दिनों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में सजावटी मछली हैचरी में उन्हें न केवल मछली पालन के तरीके सिखाए गए बल्कि सजावटी मछली पालन के गांव का दौरा भी कराया गया । साथ ही पालन अवधि के दौरान उत्पन्न समस्यायों के हल भी बताए गए।सजावटी मछली उद्योग ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों की महिलाओं के लिए आय का एक वैकल्पिक स्रोत है। झारखंड राज्य में 26% जनजातीय आबादी का निवास हैं। जमशेदपुर में लगभग 64 खुदरा और थोक सजावटी मछली उद्यम, कोलकाता के बाजार से सजावटी मछली पर निर्भर हैं। इस प्रशिक्षण में 30.05.2022 से 03.06.2022 के दौरान, प्रशिक्षुओं ने एक्वेरियम के निर्माण, सजावटी मछलियों को संभालने, विभिन्न सजावटी मछलियों जैसे गप्पी, मौली, प्लेटी और स्वोर्डटेल और अंडे जानने वाली गोल्ड फिश, कोई कार्प के प्रजनन की प्रक्रिया सीखी। उन्हें फ़ीड की आवश्यकता (प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों) और मछली के भोजन के समय, सामान्य रोग और उनके उपचार के बारे में भी सिखाया गया। उन्हें एक्वेरियम में सामान्य प्रबंधन प्रथाओं जैसे पानी का आदान-प्रदान, थर्मोस्टेट का उपयोग, एक्वेरियम में एक साथ रखने के लिए संगत एक्वैरियम मछली प्रजातियों का चयन आदि पर भी प्रशिक्षण दिया गया। इसके अतिरिक्त, हावड़ा के पास एक सजावटी गांव में उन्हें ले जाया गया ताकि उन्हें प्रेरित किया जा सके। इस कार्यक्रम में कुल 28 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें से 25 महिलाएं (दो मत्स्य अधिकारियों सहित) थीं। महिला लाभार्थी में 13 महिलाएं अनुसूचित जनजाति से और बाकी अनुसूचित जाति के अंतर्गत थी। लाभार्थी पूर्वी सिंहभूम के पुंसा, नागा और शिलिंग गांवों से, जमशेदपुर और इकती, रांची के निवासी थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अपर्णा रॉय, डॉ. पी. के. परिदा, डॉ. राजू बैठा, डॉ. प्रीतिज्योति मांझी, डॉ. अविषेक साहा, डॉ. एस. भट्टाचार्य, श्री कौसिक मंडल, और श्री रतन दास ने किया।