सिफ़री ने मोयना बील, पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय मछुआरा दिवस 2022 का आयोजन किया
10 जुलाई, 2022
भाकृअनुप-केन्द्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सिफ़री) ने दिनांक 10 जुलाई 2022 को मोयना बील, पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय मछुआरा दिवस 2022 का आयोजन किया। इस दिन सिफ़री ने जलीय कृषि क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता पहल को बढ़ावा देने के लिए गहन और औद्योगिक जलीय कृषि प्रणालियों के साथ 'उभरती जलीय कृषि प्रणालियों और अभ्यास' पर राष्ट्रीय अभियान भी मनाया।


मात्स्यिकी क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध नाम डा. हीरालाल चौधुरी और डॉ. के एच अलीखुनी का है, जिनके कठिन प्रयास के कारण मछलियों का प्रेरित प्रजनन संभव हो पाया और जो देश के नीली क्रांति का एक अभिन्न आधार बना। इन दोनों वैज्ञानिकों ने 10 जुलाई 1957 को केन्द्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान स्टेशन, बैरकपुर ने ओडिशा के अंगुल फिश फार्म में इस तकनीक को सफलतापूर्वक स्थापित किया। इस अनोखे प्रयास के सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1957 में 10 जूलाई को ‘राष्ट्रीय मत्स्य पालक दिवस’ के तौर पर घोषित किया। तब से संस्थान हर वर्ष 10 जुलाई को ‘राष्ट्रीय मत्स्य पालक दिवस’ के रूप में मनाता है। कृत्रिम पालन की दिशा में कार्प प्रजाति, सिरहिनस रेबा का प्रजनन सफल रहा । इस तकनीक का प्रयोग बाद में सिरहिनस मृगला, लेबियो रोहिता और पुंटियस सराना के प्रजनन के लिए किया गया। यह घटना भारतीय मत्स्य पालन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी जिसने जलीय कृषि में क्रांति ला दी और 1970 के दशक की शुरुआत में देश में नीली क्रांति का आह्वान किया गया। इस क्षेत्र ने 2021 में 17.4 मिलियन टन उत्पादन दर्ज किया गया है।


इस कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक, डॉ बि के दास ने सम्मानित अतिथियों के साथ प्रो. हीरालाल चौधरी को माल्यार्पण के साथ दीप प्रज्ज्वलन किया। डा. अपर्णा रॉय, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने उपस्थित सभी का स्वागत किया तथा इस महत्वपूर्ण दिवस के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. बि.के. दास ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मछली पालन से उत्पादन में सुधार और मछुआरों की आजीविका के लिए विभिन्न जलीय कृषि पद्धतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी की भागीदारी की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए मोयना में एक जल गुणवत्ता परीक्षण केंद्र की स्थापना करने पर ज़ोर दिया जिसके लिए संस्थान द्वारा आवश्यक विशेषज्ञ मार्गदर्शन का भी आश्वासन दिया। इस कार्यक्रम में सिफ़री के प्रौद्योगिकी भागीदारों को भी किसानों द्वारा खेतों में उपयोग किए जाने वाले अनुसंधान प्रयोगशाला उत्पादों के प्रयोग में उनकी भूमिका के लिए सम्मानित किया गया। मोयना रामकृष्णन एसोसिएशन के सचिव, श्री शशांक मैती ने मोयना मत्स्य पालन हब में मत्स्य पालन के विकास में सिफ़री के योगदान के लिए निदेशक और वैज्ञानिक दल को धन्यवाद दिया। साथ ही, मछली रोग और इनकी मृत्यु दर से निपटने के लिए मासिक तौर पर जल और मिट्टी की गुणवत्ता विश्लेषण के लिए भी अनुरोध किया। प्रो एस.के. दास, पश्चिम बंगाल प्राणी एवं मत्स्य विज्ञान ने किसानों को "जल कृषि में उभरते रुझान" तथा इसकी प्रभावशीलता के साथ लोकप्रिय प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन पर आवश्यकता आधारित प्रौद्योगिकी के अनुकूलन के लाभ पर प्रकाश डाला। डॉ. बी के महापात्रा, सेवानिवृत्त पीआर वैज्ञानिक, सीआईएफई, कोलकाता ने सजावटी मत्स्य पालन पर जोर दिया और किसानों को इस तकनीक को अपनाने के विभिन्न लागत वाली प्रभावी तरीकों और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के साथ बाजार मूल्य और मांग के बारे में बताया। डॉ. एस सामंता, प्रभागाध्यक्ष, सिफ़री ने "स्थायी मत्स्य प्रबंधन के लिए मिट्टी और जल गुणवत्ता प्रबंधन का महत्व" पर प्रकाश डाला तथा किसानों के लाभ के लिए सरल तरीके से मत्स्य पालन पद्धतियों में विभिन्न जल और मिट्टी की गुणवत्ता मानकों के प्रभाव को समझाया।


इस अवसर पर मछली किसानों को वैज्ञानिक मात्स्यिकी प्रबंधन की दिशा में आगे बढ़ने में सुविधा प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी, पर्यावरण निगरानी, जलीय कृषि और स्वास्थ्य के विशेषज्ञों के साथ नैदानिक शिविर का आयोजन किया गया, जहां रोगग्रस्त मछलियों के नमूने एकत्र किए गए और नमूना जल के रासायनिक विश्लेषण के साथ किसानों को इस बारे में सूचित किया गया। साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय मछुआरों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक रेडियो केंद्रों के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित किए गए। राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस मनाने का प्राथमिक लक्ष्य उन प्रौद्योगिकियों के बारे में जन-जागरूकता बढ़ाना है जो मात्स्यिकी विकास के लिए लाभकारी हैं। ऐसे प्रयास से आर्थिक विकास, आजीविका उन्नयन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा अंतर्स्थलीय मत्स्य पालन मुद्दों के समाधान के लिए वैज्ञानिकों, मछली किसानों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाया जा सकता है। वर्ष 2019 में मत्स्य पालन में मोयना मछली फार्म की प्रभावकारिता के लिए राज्य सरकार ने इसे 'मत्स्य केंद्र' घोषित किया है। इसलिए यह आशा की जाती है कि इस तरह के कार्यक्रम बेहद प्रभावीशाली होंगे और मत्स्य पालन क्षेत्र को और भी बड़ी उपलब्धियों और ऊचाइयों तक ओर ले जाएंगे।





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