भाकृअनुप-सिफरी और मैसर्स दास और कुमार के मध्य "आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर केज" हेतु लाइसेंस समझौता
27 सितंबर, 2022
भाकृअनुप-केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर, कोलकाता; एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड तथा मैसर्स दास एंड कुमार, वाराणसी द्वारा दिनांक 27 सितंबर 2022 को आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर केज के ट्रांसफर लाइसेंस समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। आईसीएआर-सिफरी पाँच वर्ष की अवधि के लिए यह अनैकान्तिक (non-exclusive) लाइसेंस प्रदान करता है जिसके अंतर्गत देश के किसी भी भाग में आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर केज का निर्माण और बिक्री किया जा सकता है। व्यावसायीकरण प्रक्रिया आईसीएआर की वाणिज्यिक शाखा, एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड के माध्यम से की गई।
बैठक के आरंभ में डॉ. गणेश चंद्र, प्रभारी, संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई ने सभी अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया और आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर केज प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 से आईसीएआर-सिफरी जीआई केज लाइसेंस के बाद मैसर्स दास और कुमार को संस्थान की तरफ से लाइसेंस प्राप्त यह दूसरी तकनीक है।
इस अवसर पर डॉ. बि.के. दास, निदेशक, भाकृअनुप-सिफरी ने इस प्रौद्योगिकी के विकास से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में संस्थान ने सात प्रौद्योगिकियों का व्यवसायीकरण किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर केज (16 मीटर व्यास और 5 मीटर गहराई वाली) जैसे गोलाकार पिंजरे का उत्पादन परिमाप 1005 क्यूबिक मीटर है जो अन्य किसी भी 12 आयताकार पिंजरों (6 मी. X 6 मी. X 4 मी.) के समतुल्य है और इससे 25-30 टन तक मछली उत्पादन किया जा सकता है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत पिंजरे में मछली पालन को सर्वोपरि महत्व दिया गया है।
डॉ दास ने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित जलाशयों और आर्द्रभूमि में राज्य मत्स्य विभाग के साथ साझेदारी में इस नई पालन तकनीक को और भी लोकप्रिय बनाया जाए। उन्होंने कहा कि आईसीएआर-सिफरी वर्तमान में आईओटी के उपयोग से पिंजरों में मछलियों की फीडिंग और निगरानी सहित इनमें मछली पालन के स्वचालन तकनीक पर काम कर रहा है। साथ ही, पिंजरों में एंटी-फाउलिंग जाल पर भी कार्य चल रहा है।
डॉ. जी एच पाइलन, केंद्र प्रमुख, भाकृअनुप-केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, कोलकाता केंद्र ने सिफरी के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि इन प्रौद्योगिकियों से मछली उत्पादन के साथ जलाशयों और आर्द्रभूमि की उत्पादकता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी और अंततः किसानों और उद्यमियों को अत्यधिक लाभ होगा।
श्री यश अग्रवाल, भागीदार, मैसर्स दास एंड कुमार, वाराणसी ने कहा कि उनका संगठन लंबे समय से सिफरी से जुड़ा हुआ है और इस प्रौद्योगिकी के विकास में दोनों संगठनों की सहभागिता अच्छा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि यह तकनीक कम लागत वाली, किफायती और किसान हितैषी है तथा इससे किसानों को अच्छा लाभ मिलेगा।
आईसीएआर-सिफरी सर्कुलर एचडीपीई पिंजरे संरचनात्मक तौर पर दूसरी आयताकार पिंजरों की तुलना में अधिक मजबूत होते हैं और मजबूत लहरों और तूफान का सामना कर सकते हैं। इन पिंजरों को जल में आसानी से स्थापित किया जा सकता हैं क्योंकि ये जाल के साथ पूरी तरह उपयुक्त होते हैं। इनमें इंडियन मेजर कार्प जैसी बहुमूल्य मछली प्रजातियों का पालन किया जा सकता है। पिंजरे की चौड़ाई 1 मीटर होती है जिसमें बड़ी मछलियों के उत्पादन के लिए 1005 क्यूबिक मीटर जल रह सकता है। इसकि संरचना गोलाकार होने के कारण इसमें 25 मीट्रिक टन तक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस पिंजरे के साथ तैरता हुआ मगर स्थिर एक मीटर का प्लेटफॉर्म लगा होता है जिसपर आसानी से पैदल चला जा सकता है।