भाकृअनुप-केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ने विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर ‘आर्द्रभूमि में सतत मत्स्य प्रबंधन' पर विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया
बैरकपुर,2 फरवरी 2023
विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2023 के अवसर पर, भाकृअनुप-केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर ने 2 फरवरी 2023 को संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र, गुवाहाटी में हाइब्रिड मोड में ‘आर्द्रभूमि में सतत मत्स्य प्रबंधन' पर विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया। इस वर्ष का थीम था 'आर्द्रभूमि की बहाली का यही सही समय'।
विभिन्न संगठन जैसे असम और पश्चिम बंगाल के मत्स्य विभाग, बाढ़ के मैदानी आर्द्रभूमि (बील) के हितधारक; असम मत्स्य विकास निगम लिमिटेड; कॉलेज ऑफ फिशरीज (एएयू), राहा; असम राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण; गुवाहाटी विश्वविद्यालय; राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड, एनईआरसी, गुवाहाटी; पर्यावरण और वन विभाग, असम सरकार; असम कृषि व्यवसाय और ग्रामीण परिवर्तन परियोजना (एपीएआरटी); वर्ल्डफिश; आरण्यक (एनजीओ), और प्रगतिशील बील मछुआरों/पट्टेदारों की संस्था ने इस दिन भर चलने वाले कार्यक्रम में भाग लिया।

डॉ. दीपेश देबनाथ, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों मोड में उपस्थित अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और सत्र के बारे में जानकारी दी। संस्थान के निदेशक डॉ. बि.के. दास ने आर्द्रभूमि द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का संक्षेप में मूल्यांकन किया, जो स्थानीय लोगों के लिए आजीविका का साधन हैं। उन्होंने कई आर्द्रभूमियों के बारे में चिंता जताई जो डिस्कनेक्ट हो रही हैं, कृषि रन-ऑफ और सिस्टम में माइक्रोबियल समुदाय और प्रजातियों की हानि जिसका कारण है। उन्होनें बताया की आर्द्रभूमि के सामने आने वाले मुद्दों को सुलझाने के लिए एक रणनीतिक योजना की आवश्यकता है।
डॉ. यू.के. सरकार, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएफजीआर, लखनऊ ने आर्द्रभूमि को सही रखने और आर्द्रभूमि से लुप्त हो चुकी मछली प्रजातियों की पुन:स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया। श्री राकेश कुमार, आईएएस, आयुक्त एवं सचिव, मत्स्य पालन, असम सरकार, ने जोर देकर कहा कि आर्द्रभूमि संरक्षण और मछुआरों की भलाई के साथ स्वच्छ जल प्राथमिकता होनी चाहिए। श्री पी. बोरकाकती, एसीएस, एमडी, एएफडीसी लिमिटेड, असम ने असम की आर्द्रभूमि और एएफडीसी लिमिटेड द्वारा किए जा रहे कार्य के बारे में बात की। उन्होंने आईसीएआर-सिफरी द्वारा उनकी विकासात्मक परियोजनाओं में दी गई तकनीकी विशेषज्ञता का उल्लेख किया।
डॉ. ए.के. दास, जलाशय और आर्द्रभूमि प्रभाग के प्रमुख, भाकृअनुप-सिफरी, बैरकपुर ने सुझाव दिया कि आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए सहयोगात्मक कार्य किया जाना चाहिए। डॉ. बी. के. भट्टाचार्य, प्रमुख, भाकृअनुप-सिफरी क्षेत्रीय केंद्र, गुवाहाटी ने बाढ़ ग्रसित आर्द्रभूमि मात्स्यिकी के संरक्षण और सतत उपयोग से संबंधित प्रमुख मुद्दों को उठाया।
तकनीकी सत्र में तेजपुर विश्वविद्यालय के प्रो. डी.सी. बरुआ ने आग्रह किया कि हम सभी को आर्द्रभूमि के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि 'कचरा क्या फेंकना है और कचरा कहां फेंकना है?' असम राज्य जैव विविधता बोर्ड की डॉ. ओ सुनंदा देवी ने जैव विविधता विरासत स्थल की पहचान करने के बारे में बताया ताकि कुछ जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों का संरक्षण किया जा सके। श्री आशिम कु. बोरा, प्रभारी एनएफडीबी एनईआरसी, गुवाहाटी ने सवाल उठाया कि क्या बील विकास और संरक्षण साथ-साथ चल सकता है। एनएफडीबी की सुश्री डोरोथी का मानना है कि स्थानीय लोगों को आर्द्रभूमि क्षरण और इसके संरक्षण के तरीकों के बारे में जागरुकता दी जानी चाहिए।





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