गंगा नदी में हिलसा मछली के संरक्षण और पुनर्स्थापन हेतु रैंचिंग : एक मिशन मोड दृष्टिकोण
साहिबगंज (ओझा टोली घाट), 17 फरवरी, 2023
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत भाकृअनुप-केंद्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सिफरी), बैरकपुर ने 17 फरवरी 2023 को साहिबगंज (ओझा टोली घाट), झारखंड
में एक रैंचिंग कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें गंगा नदी में हिलसा मछली के 1,80,000 निषेचित अंडे और 3000 पोना मछलियों को छोड़ा गया। गंगा नदी में हिलसा मछली के निषेचित अंडे और पोना मछलियों की रैंचिंग का उद्देश्य लार्वा की उत्तम अतिजीविता और वयस्क मछलियों के बेहतर परिपक्वता तथा विकास के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना है। संस्थान के अध्ययन के अनुसार, नियंत्रित परितंत्र में लार्वा का विकास एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसलिए कृत्रिम निषेचन के बाद निषेचित अंडों और पोना मछलियों को नदी के संरक्षित स्थल में छोड़ना गंगा और अन्य नदियों में मत्स्य प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में एक प्रभावी रणनीति साबित हो सकती है। इस अभिनव पद्धति को देश की अन्य नदीय परितंत्रों जैसे महानदी, गोदावरी और कावेरी में अपनाया जा सकता है।

इसी क्रम में सिफरी ने फरक्का में एक हिलसा रेंचिंग स्टेशन स्थापित किया है। इसके लिए, फरक्का में गंगा नदी से वाइल्ड मत्स्य प्रजातियाँ के नर और मादा मछलियों को एकत्र किया गया तथा फरक्का हिलसा रेंचिंग स्टेशन में इनका कृत्रिम निषेचन किया गया। इन निषेचित अंडों को 26.1 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ऊष्मायन किया गया था और इन्हे प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध प्लवक और कृत्रिम रूप से विकसित क्लोरेला खिलाया गया। सक्रिय रूप से तैरने वाले स्पॉन को ऑक्सीजन युक्त डब्बों में पैक करके साहिबगंज, झारखंड में ले जाया गया। इसके साथ ही, निषेचित अंडों को भी ऑक्सीजन युक्त डब्बों में भर कर सुबह-सुबह रैंचिंग स्थल पर ले जाया गया। साहेबगंज में गंगा नदी में उपयुक्त संरक्षित स्थलों पर इन निषेचित अंडे और स्पॉन को छोड़ा गया। यह कार्यक्रम झारखंड पूर्वी गंगा मछुआरा सहकारी समिति लिमिटेड और मत्स्य पालन विभाग, झारखंड के सहयोग आयोजित किया गया। इस अवसर पर सिफरी तथा उक्त संगठन/कार्यालय के प्रतिनिधियों और 50 से अधिक मछुआरों ने भाग लिया और इस कार्यक्रम की भरपूर सराहना की। हिलसा स्पॉन और निषेचित अंडों का यह रेंचिंग कार्यक्रम नदी में न केवल देशी जर्मप्लाज्म को बढ़ाएगा बल्कि हिल्सा मछली को उसके मूल आवास स्थल
अर्थात गंगा नदी के मध्य खंड में पुनरुत्थान में मदद करेगा जो फरक्का बैराज निर्माण के बाद प्रायः खतम हो चुका था। यह कार्यक्रम सिफरी के निदेशक डॉ. बि. के. दास के मार्गदर्शन तथा नमामि गंगे परियोजना के वैज्ञानिकों और अनुसंधान सहयोगियों द्वारा समन्वयित किया गया।





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