आईसीएआर-सिफ़री, बैरकपुर ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) परियोजना के तहत "गंगा नदी में मछली संरक्षण और रैन्चिंग पर हितधारक परामर्श सह सलाहकार समापन कार्यशाला” का आयोजन किया
बैरकपुर , 27 सितंबर, 2023
आईसीएआर-केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सिफ़री), बैरकपुर ने भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एन.एम.सी.जी.) के तीन साल की परियोजना की उपलब्धि को संबोधित करने के लिए 26 सितंबर 2023 को एक दिवसीय समापन कार्यशाला "गंगा नदी में मछली संरक्षण और रैन्चिंग पर हितधारक परामर्श सह सलाहकार कार्यशाला" का आयोजन किया। आईसीएआर-सिफ़री के निदेशक और एनएमसीजी के प्रमुख अन्वेषक डॉ. बसंत कुमार दास ने बैठक को संबोधित किया और परियोजना का एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत किया और इस परियोजना के तहत सिफ़री द्वारा किए गए रैन्चिंग कार्यक्रमों और प्रयासों के बारे में प्रकाश डाला। उन्होनें बताया कि वर्ष 2020-23 के दौरान 65 लाख से अधिक मछली के अंगुलिमीनों को पांच राज्यों अर्थात् उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में छोड़े गए। उन्होंने गंगा नदी में हाल ही में किए गए रैन्चिंग कार्यक्रम के प्रभाव को भी रेखांकित किया जिसके परिणामस्वरूप भारतीय प्रमुख कार्प (आईएमसी) की लैंडिंग में प्रयागराज में 24.70%, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में 41.03% और पटना, बिहार में 25% से अधिक की वृद्धि हुई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जलीय जैव विविधता के संरक्षण और गंगा नदी में मछली के आवास की बहाली के लिए इस परियोजना के तहत 10 हजार मछुआरों को लगभग 140 जन जागरूकता कार्यक्रम में जागरूक किया गया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि परियोजना अवधि के दौरान 227 लाख भारतीय प्रमुख कार्प (आईएमसी) बीजों का प्रजनन और पालन किया गया। मछुआरों तक पहुंच कर इस परियोजना ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं और भारत सरकार ने देश भर में कई नदी रैन्चिंग कार्यक्रम शुरू किए हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एन.एम.सी.जी.) में जैव विविधता सलाहकार डॉ. संदीप बेहरा ने गंगा नदी के विभिन्न लुप्त हो चुके हिस्सों में रैन्चिंग कार्यक्रमों के माध्यम से मछली उत्पादन बढ़ाने और गंगा नदी की मूल मछली के संरक्षण के लिए सिफ़री के प्रयासों की सराहना की। आगे उन्होंने बताया है कि इस परियोजना ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं और इसके परिणाम सराहनीय हैं।
स्थानीय मछुआरे समुदाय के बारह व्यक्ति भी इस कार्यशाला में उपस्थित थे और उन्होंने सिफ़री के प्रति आभार व्यक्त किया और इस पर अपने विचार साझा किए कि यह परियोजना आजीविका सृजन में कैसे मदद करती है। उन्होंने गंगा नदी में मछली पकड़ने के लिए जीरो मेश जाल और जहर के बड़े पैमाने पर प्रयोग पर भी चिंता व्यक्त की।


पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बीओबीपी, डब्ल्यूआईआई, मत्स्य पालन विभाग, पश्चिम बंगाल के विशेषज्ञ, आईसीएआर-सीआईएफई और आईसीएआर-सीआईएफआरआई के वैज्ञानिक और अनुसंधान विद्वानों ने कार्यशाला में भाग लिया और परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया गया कि इस प्रकार के शोध से भारतीय नदियों की जैव विविधता का अध्ययन करने के लिए एक बड़ा डेटा तैयार होगा और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र कार्य और पारिस्थितिक अखंडता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सभी का मानना है कि इस तरह का हस्तक्षेप जैव विविधता हानि, जलवायु परिवर्तन और एसडीजी को संबोधित करने के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है।





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