सिफ़री के निदेशक डॉ. बि.के. दास ने पिछले 3 वर्षों से एनएमसीजी हिल्सा परियोजना (घटक II) के तहत किए गए कार्यों की एक संक्षिप्त प्रस्तुति के साथ कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की। प्रेजेंटेशन में उन्होंने परियोजना के उद्देश्यों, परियोजना के तहत महत्वपूर्ण गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। डॉ. दास ने बताया कि गंगा नदी के मध्य खंड में हिल्सा स्टॉक को बढ़ाने के उद्देश्य से फरक्का बैराज के ऊपरी प्रवाह में 90,000 से अधिक हिल्सा को छोड़ा गया हैं। उन्होंने हिल्सा पालन प्रक्रिया, टैगिंग विधियों और अपस्ट्रीम में हिल्सा की पुनर्प्राप्ति के बारे में जानकारी दी। हिल्सा के प्रजनन को बढ़ाने के लिए अंडे और स्पॉन को भी नदी में प्रवाहित किया गया और हिल्सा की आबादी पर रैन्चिंग के प्रभाव को भी प्रस्तुत किया गया। डॉ. बि.के. दास ने हिल्सा के कैप्टिव प्रजनन और पालन के लिए परियोजना के तहत किए गए प्रयोगों को भी प्रस्तुत किया। गंगा नदी में हिल्सा की बहाली और संरक्षण और उनके पालन-पोषण से संबंधित मुद्दों और चुनौतियों पर भी चर्चा की गई।
पैनल चर्चा के दौरान, विशेषज्ञ सदस्यों ने आईसीएआर-सिफ़री द्वारा विशेष रूप से रैन्चिंग कार्यक्रम के कारण प्रयागराज से फरक्का के बीच गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में हिल्सा की पुन: उपस्थिति की सराहना की। उन्होंने हिल्सा प्रजनन स्थलों की पहचान करने और उन्हें विनाशकारी मछली पकड़ने से बचाने पर विस्तृत काम करने पर जोर दिया। हिलसा को पिंजरों और अन्य प्रणालियों के तहत बंध जगहों में पालन करने के तकनीकों पर अधिक शोध प्रयास करने की आवश्यकता हैं। उन्होंने गंगा नदी में हिल्सा के स्थायी प्रबंधन से संबंधित रणनीतियों और हिल्सा मत्स्य पालन प्रबंधन के लिए राज्य सरकारों और अनुसंधान संगठन के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर भी चर्चा की। इसके अलावा, पीक सीज़न के दौरान छोटे जालीदार जालों का उपयोग न करना, अवैध मछली पकड़ने पर रोक और ब्रूडर संग्रह जैसी चुनौतियों को अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों के रूप में बताया गया। गोधाखाली, डायमंड हार्बर के मछली किसानों/मछुआरों ने भी विशेषज्ञ सदस्यों के साथ बातचीत की और हिल्सा के कम उपलब्धता के बारे में चिंताएं व्यक्त की और भविष्य में सिफ़री से विस्तारित सहयोग के लिए सहमति व्यक्त की। अंत में, एनएमसीजी के सह-अन्वेषक डॉ. डी.के.मीना द्वारा प्रस्तावित धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यशाला औपचारिक रूप से समाप्त हो गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ए. के. साहू, डॉ. डी.के.मीना, श्री संथाना कुमार और श्री मितेश रामटेके द्वारा किया गया। सिफ़री के निदेशक डॉ. बसंत कुमार दास की समग्र देखरेख में एनएमसीजी घटक II के अनुसंधान विद्वानों के सहयोग से यह कार्यशाला सुचारु रूप से सम्पन्न हुआ।