इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 30 सक्रिय मछली किसानों ने भाग लिया। संस्थान के निदेशक डॉ. बि.के. दास ने अन्तर्स्थलीय मत्स्य उत्पादन प्रणाली और प्रबंधन के कई पहलुओं के संबंध में मछुआरों के ज्ञान-आधारित कौशल विकास पर विशेष जोर दिया, जो उनकी स्थायी आजीविका को सुरक्षित करेगा। उनका मानना था कि उत्पादन और उत्पादकता को अधिकतम करने के लिए, मछुआरों को वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने और इसे अपने संसाधन अन्वेषण में लागू करने की आवश्यकता है। डॉ. दास ने प्रशिक्षुओं को भारत के अन्तर्स्थलीय मत्स्य पालन में उद्यमिता के उभरते अवसरों के बारे में भी जानकारी दी।
अन्तर्स्थलीय मत्स्य पालन विकास के लिए इस जिले में अप्रयुक्त क्षमता प्रचुर है, जिससे मछुआरों की जीविका में सुधार हो सकता है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का लक्ष्य अन्तर्स्थलीय मत्स्य प्रशासन और किसानों के बीच मौजूद दृष्टिकोण, कौशल और ज्ञान के अंतर को पाटना था। पाठ्यक्रम में कई विषयों पर व्याख्यान शामिल थे, जिनमें तालाबों का निर्माण और रखरखाव, मिट्टी और पानी का रसायन, प्रेरित प्रजनन, नर्सरी और पालन तालाब प्रबंधन, जीवित मछली के बीज का परिवहन, मिश्रित मछली पालन, सजावटी मछली पालन, घेरे में मछली पालन आदि शामिल थे। सिफ़री उत्पादों के प्रदर्शन के साथ-साथ मछली चारा प्रबंधन, रोग प्रबंधन, शून्य बजट में प्राकृतिक तरीके से मछली पालन, अन्तर्स्थलीय मत्स्य पालन और जलवायु परिवर्तन, आर्थिक मूल्यांकन और प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का एक सामान्य अवलोकन भी प्रशिक्षण में शामिल था।
फीडबैक सत्र के दौरान, ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रशिक्षु नई अर्जित जानकारी से संतुष्ट थे, जो उनकी भविष्य की गतिविधियों में बहुत सहायक होगी। संस्थान के निदेशक डॉ. बि.के. दास ने किसानों को अपने उत्पादन के स्तर को बेहतर बनाने के लिए जो कुछ भी सीखा है उसे लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया। डॉ. अपर्णा रॉय और डॉ. दिबाकर भक्त ने श्री वाई. अली, कौशिक मंडल, सुजीत चौधरी और मनबेंद्र रॉय की सहायता से प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वय किया।